पुस्तक की आत्मकथा
मैं अपना परिचय कुछ इस प्रकार देना चाहूंगी – मैं ज्ञान का भंडार हूं, मुझमें ज्ञान का सागर उपस्थित है। मैं शिक्षा एवं मनोरंजन का उत्तम साधन मानी जाती हूं। मेरे बिना शिक्षा ग्रहण करना संभव नहीं है, शिक्षा के क्षेत्र को मेरे बिना कल्पना कर पाना भी संभव नहीं है। मैं शिक्षक एवं शिष्य के बीच की डोरी हूं।
मनुष्य ने मेरी कुछ इस प्रकार व्याख्या की है, “पुस्तकें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र मानी जाती है”। मुझ में मां सरस्वती का वास है। मुझे पढ़ कर ना जाने कितने ही अज्ञानी विद्वान बनते है। जो व्यक्ति मेरे साथ मित्रता का स्वभाव रखते हैं, मुझे अपना सबसे ज्यादा वक्त देते हैं, मेरे साथ अधिकतम समय बिताते हैं, मुझे पढ़ते हैं, उन्हें में अंधकार से प्रकाश की ओर ले आती हूं।
मैं वह मुकाम रखती हूं कि किसी भी व्यक्ति को ज्ञान का धनी बना दूँ। जो मेरा सम्मान करते हैं, अपना समय पुस्तकें पढ़ने में व्यतीत करते हैं, वह लोग ज्ञान से भर जाते हैं; ज्ञानी हो जाते हैं, और फिर सारी दुनिया उनका सम्मान करती है। मैं किसी भी व्यक्ति को बुलंदियों पर पहुंचाने का दमखम रखती हूं। जो मुझे हृदय से लगा ले, उसे दुनिया सलाम करती है।
इस दुनिया में जितने भी विद्वान हैं, वह सभी मेरे द्वारा शिक्षा ग्रहण करके ही ऊंचाइयों पर पहुंचे हैं अथवा उन्होंने अपने जीवन में सफलता का परचम लहराया है। चाहे वह अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ डॉक्टर हो या जनता के हित में कार्य करता आई.ए.एस अफसर या ज्ञान देता शिक्षक या इमारतें बनाता इंजीनियर या फिर भविष्य के लिए शोध करता वैज्ञानिक हो, सभी मेरे कारण ही शिखर पर पहुंचे हैं।
मैंने लोगों के भविष्य संवारे हैं, उन्हें काबिल बनाया है, समाज में रहने लायक बनाया है एवं अपनी आजीविका का प्रबंध करने हेतु सक्षम भी। जो मेरी इज्ज़त करते हैं, वह जीवन में आगे बढ़ते हैं, तरक्की करते हैं, नाम कमाते हैं और जो मेरा सम्मान नहीं करते है, मुझसे दूरी बनाए रखते हैं, मुझ में रुचि नहीं लेते, वह जिंदगी की दौड़ में पीछे रह जाते हैं; कभी अपने जीवन में कुछ बन नहीं पाते, अज्ञानी रह जाते हैं और आज के युग में अज्ञानी होना सबसे बड़ा अभिशाप है। मैं वह जादू का पिटारा हूं, जो कोई मुझे अपने जीवन में उतार ले तो संभवतः ही जीवन प्रकाश से प्रज्वलित हो जाता है।
मैं अलग-अलग विषयों में उपलब्ध होती हूं, अनेकों रंग एवं रूप के साथ, कभी हल्की तो कभी भारी। मेरे पृष्ठ कभी पीले, नीले या सफेद अर्थात किसी भी रंग के हो सकते हैं। मेरा विषयों के अनुसार वर्गीकरण है, जैसे के साहित्य की पुस्तकें, उपन्यास, छोटे बच्चों की पुस्तकें, मेडिकल की पुस्तकें आदि।
पृथ्वी के अस्तित्व में आने के पश्चात जब जीवन की शुरुआत हुई एवं धीरे-धीरे मानव जाति का विकास हुआ तो मनुष्य ने भिन्न-भिन्न विषयों के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की और वही जानकारी संयुक्त होकर ज्ञान कहलाई, अथवा ज्ञान को ग्रहण करना शिक्षा कहलाया। पुरातन काल में मेरे अभाव के कारण शिक्षा ग्रहण करने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
ज्ञान को अर्जित करने के लिए किसी अच्छे, टिकाऊ माध्यम की आवश्यकता थी, जिसके द्वारा ज्ञान फैल सके एवं शिक्षा ग्रहण हो सके; सभी शिक्षित किए जा सके। शुरुआत में अलग-अलग वस्तुओं का प्रयोग हुआ, जैसे पत्ते, कपड़े आदि जिन पर स्याही द्वारा लिखाई करके शिक्षा दी जाती थी। परंतु समय बदला और आखिरकार कागज का आविष्कार हुआ अथवा मुझे यह स्वरूप मिला, जो आज आपके सामने है।
कागज को वृक्षों द्वारा निर्मित किया जाता है, जो कि एक लंबी एवं कठिन प्रक्रिया है। कागजों पर संबंधित विषय के बारे में लिखाई अथवा प्रिंटिंग की जाती है, जिसके उपरांत काग़ज़ों को पृष्ठ का रूप मिलता हैं।
इस के बाद, पृष्ठों को ध्यानपूर्वक क्रमबद्ध तरीके से एक साथ सिल लिया जाता है। आज भी पुस्तक बनाने की लगभग यही विधि है, बस हल्के फेरबदल के साथ; आज के युग में पृष्ठों को गोंद द्वारा आपस में क्रम से जोड़ा जाता है।
मनुष्य से मेरा बहुत गहरा एवं बहुत पुराना संबंध है, इसके पश्चात भी कुछ लोग मुझे बहुत चाव एवं अच्छे ढंग से रखते हैं और कुछ लोग मुझ में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेते हैं; यह तो भिन्न-भिन्न मनुष्य का स्वभाव है, मुझे इससे कोई शिकायत नहीं, क्योंकि जो मुझे मन से लगाएगा, वही समृद्धि पाएगा।
पर मुझे तब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है, जब मैं रद्दी में कौड़ी के भाव बेच दी जाती हूं, इससे बेहतर तो यह होगा कि मैं किसी गरीब बच्चे को भेंट कर दी जाऊं या किसी छात्र को आधी कीमत में दे दी जाऊं, क्योंकि यही छोटे कदम हमारे देश के सामाजिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे।
मैं सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि धार्मिक ग्रंथों के रूप में भी पाई जाती हूं। मेरे अनेकों स्वरूप है, मैं गीता भी हूं, मैं कुरान भी हूं, मैं बाइबल भी हूं। सभी धार्मिक ग्रंथ एक ही पाठ सिखाते हैं, कि मानवता ही प्रथम धर
मैं अपना परिचय कुछ इस प्रकार देना चाहूंगी – मैं ज्ञान का भंडार हूं, मुझमें ज्ञान का सागर उपस्थित है। मैं शिक्षा एवं मनोरंजन का उत्तम साधन मानी जाती हूं। मेरे बिना शिक्षा ग्रहण करना संभव नहीं है, शिक्षा के क्षेत्र को मेरे बिना कल्पना कर पाना भी संभव नहीं है। मैं शिक्षक एवं शिष्य के बीच की डोरी हूं।
मनुष्य ने मेरी कुछ इस प्रकार व्याख्या की है, “पुस्तकें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र मानी जाती है”। मुझ में मां सरस्वती का वास है। मुझे पढ़ कर ना जाने कितने ही अज्ञानी विद्वान बनते है। जो व्यक्ति मेरे साथ मित्रता का स्वभाव रखते हैं, मुझे अपना सबसे ज्यादा वक्त देते हैं, मेरे साथ अधिकतम समय बिताते हैं, मुझे पढ़ते हैं, उन्हें में अंधकार से प्रकाश की ओर ले आती हूं।
मैं वह मुकाम रखती हूं कि किसी भी व्यक्ति को ज्ञान का धनी बना दूँ। जो मेरा सम्मान करते हैं, अपना समय पुस्तकें पढ़ने में व्यतीत करते हैं, वह लोग ज्ञान से भर जाते हैं; ज्ञानी हो जाते हैं, और फिर सारी दुनिया उनका सम्मान करती है। मैं किसी भी व्यक्ति को बुलंदियों पर पहुंचाने का दमखम रखती हूं। जो मुझे हृदय से लगा ले, उसे दुनिया सलाम करती है।
इस दुनिया में जितने भी विद्वान हैं, वह सभी मेरे द्वारा शिक्षा ग्रहण करके ही ऊंचाइयों पर पहुंचे हैं अथवा उन्होंने अपने जीवन में सफलता का परचम लहराया है। चाहे वह अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ डॉक्टर हो या जनता के हित में कार्य करता आई.ए.एस अफसर या ज्ञान देता शिक्षक या इमारतें बनाता इंजीनियर या फिर भविष्य के लिए शोध करता वैज्ञानिक हो, सभी मेरे कारण ही शिखर पर पहुंचे हैं।
मैंने लोगों के भविष्य संवारे हैं, उन्हें काबिल बनाया है, समाज में रहने लायक बनाया है एवं अपनी आजीविका का प्रबंध करने हेतु सक्षम भी। जो मेरी इज्ज़त करते हैं, वह जीवन में आगे बढ़ते हैं, तरक्की करते हैं, नाम कमाते हैं और जो मेरा सम्मान नहीं करते है, मुझसे दूरी बनाए रखते हैं, मुझ में रुचि नहीं लेते, वह जिंदगी की दौड़ में पीछे रह जाते हैं; कभी अपने जीवन में कुछ बन नहीं पाते, अज्ञानी रह जाते हैं और आज के युग में अज्ञानी होना सबसे बड़ा अभिशाप है। मैं वह जादू का पिटारा हूं, जो कोई मुझे अपने जीवन में उतार ले तो संभवतः ही जीवन प्रकाश से प्रज्वलित हो जाता है।
मैं अलग-अलग विषयों में उपलब्ध होती हूं, अनेकों रंग एवं रूप के साथ, कभी हल्की तो कभी भारी। मेरे पृष्ठ कभी पीले, नीले या सफेद अर्थात किसी भी रंग के हो सकते हैं। मेरा विषयों के अनुसार वर्गीकरण है, जैसे के साहित्य की पुस्तकें, उपन्यास, छोटे बच्चों की पुस्तकें, मेडिकल की पुस्तकें आदि।
पृथ्वी के अस्तित्व में आने के पश्चात जब जीवन की शुरुआत हुई एवं धीरे-धीरे मानव जाति का विकास हुआ तो मनुष्य ने भिन्न-भिन्न विषयों के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की और वही जानकारी संयुक्त होकर ज्ञान कहलाई, अथवा ज्ञान को ग्रहण करना शिक्षा कहलाया। पुरातन काल में मेरे अभाव के कारण शिक्षा ग्रहण करने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
ज्ञान को अर्जित करने के लिए किसी अच्छे, टिकाऊ माध्यम की आवश्यकता थी, जिसके द्वारा ज्ञान फैल सके एवं शिक्षा ग्रहण हो सके; सभी शिक्षित किए जा सके। शुरुआत में अलग-अलग वस्तुओं का प्रयोग हुआ, जैसे पत्ते, कपड़े आदि जिन पर स्याही द्वारा लिखाई करके शिक्षा दी जाती थी। परंतु समय बदला और आखिरकार कागज का आविष्कार हुआ अथवा मुझे यह स्वरूप मिला, जो आज आपके सामने है।
कागज को वृक्षों द्वारा निर्मित किया जाता है, जो कि एक लंबी एवं कठिन प्रक्रिया है। कागजों पर संबंधित विषय के बारे में लिखाई अथवा प्रिंटिंग की जाती है, जिसके उपरांत काग़ज़ों को पृष्ठ का रूप मिलता हैं।
इस के बाद, पृष्ठों को ध्यानपूर्वक क्रमबद्ध तरीके से एक साथ सिल लिया जाता है। आज भी पुस्तक बनाने की लगभग यही विधि है, बस हल्के फेरबदल के साथ; आज के युग में पृष्ठों को गोंद द्वारा आपस में क्रम से जोड़ा जाता है।
मनुष्य से मेरा बहुत गहरा एवं बहुत पुराना संबंध है, इसके पश्चात भी कुछ लोग मुझे बहुत चाव एवं अच्छे ढंग से रखते हैं और कुछ लोग मुझ में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेते हैं; यह तो भिन्न-भिन्न मनुष्य का स्वभाव है, मुझे इससे कोई शिकायत नहीं, क्योंकि जो मुझे मन से लगाएगा, वही समृद्धि पाएगा।
पर मुझे तब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है, जब मैं रद्दी में कौड़ी के भाव बेच दी जाती हूं, इससे बेहतर तो यह होगा कि मैं किसी गरीब बच्चे को भेंट कर दी जाऊं या किसी छात्र को आधी कीमत में दे दी जाऊं, क्योंकि यही छोटे कदम हमारे देश के सामाजिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे।
मैं सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि धार्मिक ग्रंथों के रूप में भी पाई जाती हूं। मेरे अनेकों स्वरूप है, मैं गीता भी हूं, मैं कुरान भी हूं, मैं बाइबल भी हूं। सभी धार्मिक ग्रंथ एक ही पाठ सिखाते हैं, कि मानवता ही प्रथम धर
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